आ जाए कहीं बाद का झोंका तो मज़ा हो
ज़ालिम तिरे मुखड़े से दुपट्टा जो उलट जाए
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कटती है कोई दम यहीं औक़ात मज़े की
क्या जामा-ए-फुल-कारी उस गुल की फबन का था
देखे कहीं रस्ते में खड़ा मुझ को तो ज़िद से
था जिन्हें हुस्न-परस्ती से हमेशा इंकार
कीना जो तिरे दिल में भरा है सो किधर जाए
जूँ जूँ नहीं देखे है 'निसार' अपने सनम को
किस जफ़ा-कार से हम अहद-ए-वफ़ा कर बैठे
देखे कहीं मुझ को तो लब-ए-बाम से हट जाए
हम दिल ओ जाँ से ख़रीदार हैं किन के उन के
किस काफ़िर-बे-मेहर से दिल अपना लगा है
मेरे परवाने को अब मुज़्दा-ए-मायूसी है