देखे कहीं रस्ते में खड़ा मुझ को तो ज़िद से
आता हो इधर को तो उधर ही को पलट जाए
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अश्क हुए हैं अबतर ऐसे हम को बहाए देते हैं
मुझ में और उन में सबब क्या जो लड़ाई होगी
करो सामान झूले का कि अब बरसात आई है
किस काफ़िर-बे-मेहर से दिल अपना लगा है
मेरे परवाने को अब मुज़्दा-ए-मायूसी है
आ जाए कहीं बाद का झोंका तो मज़ा हो
हम दिल ओ जाँ से ख़रीदार हैं किन के उन के
कुछ मुझे अब ज़िंदगी अपनी नज़र आती नहीं
बार-ए-ख़ातिर बाग़बाँ का ने दिल-आज़ार-ए-चमन
ये जो हम से दो चार बैठे हैं
क्या फ़ुसूँ तू ने ख़ुदा जाने ये हम पर मारा
कीना जो तिरे दिल में भरा है सो किधर जाए