ये डर है क़ाफ़िले वालो कहीं न गुम कर दे
मिरा ही अपना उठाया हुआ ग़ुबार मुझे
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रब्त है हुस्न ओ इश्क़ में बाहम
वो मिले तो बे-तकल्लुफ़ न मिले तो बे-इरादा
लुत्फ़-ए-वफ़ा नहीं कि वो बेदाद-गर नहीं
दावर-ए-हश्र मिरा नामा-ए-आमाल न देख
ग़ैर के ख़त में मुझे उन के पयाम आते हैं
रस-भरे होंट
जिस तरह हम ने रातें काटी हैं
दाग़ सीने पे जो हमारे हैं
हुज़ूर-ए-यार भी आँसू निकल ही आते हैं
मेरी वफ़ाएँ याद करोगे
ये दलील-ए-ख़ुश-दिली है मिरे वास्ते नहीं है