जिस तरह हम ने रातें काटी हैं
उस तरह हम ने दिन गुज़ारे हैं
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वो मिले तो बे-तकल्लुफ़ न मिले तो बे-इरादा
रस-भरे होंट
रब्त है हुस्न ओ इश्क़ में बाहम
दावर-ए-हश्र मिरा नामा-ए-आमाल न देख
ये दलील-ए-ख़ुश-दिली है मिरे वास्ते नहीं है
ऐ हक़-सरिश्त आइना-ए-हक़-नुमा हैं हम
लंदन की एक शाम
मेरी वफ़ाएँ याद करोगे
हमें भी देख कि हम आरज़ू के सहरा में
लुत्फ़-ए-वफ़ा नहीं कि वो बेदाद-गर नहीं
दाग़ सीने पे जो हमारे हैं
मुझ को तो बर्बाद किया है