दावर-ए-हश्र मिरा नामा-ए-आमाल न देख
इस में कुछ पर्दा-नशीनों के भी नाम आते हैं
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Habib Jalib
Wasi Shah
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Friends Poetry
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हमें भी देख कि हम आरज़ू के सहरा में
लंदन की एक शाम
ये दलील-ए-ख़ुश-दिली है मिरे वास्ते नहीं है
शिकवा-ए-बेजा की क्या उन से शिकायत हम करें
जिस तरह हम ने रातें काटी हैं
मेरी वफ़ाएँ याद करोगे
हुस्न के राज़-ए-निहाँ शरह-ए-बयाँ तक पहुँचे
वो मिले तो बे-तकल्लुफ़ न मिले तो बे-इरादा
ये डर है क़ाफ़िले वालो कहीं न गुम कर दे
हुज़ूर-ए-यार भी आँसू निकल ही आते हैं
रस-भरे होंट
लुत्फ़-ए-वफ़ा नहीं कि वो बेदाद-गर नहीं