मुझ को तो बर्बाद किया है
और किसे बर्बाद करोगे
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मेरी वफ़ाएँ याद करोगे
दावर-ए-हश्र मिरा नामा-ए-आमाल न देख
शिकवा-ए-बेजा की क्या उन से शिकायत हम करें
हुज़ूर-ए-यार भी आँसू निकल ही आते हैं
ये डर है क़ाफ़िले वालो कहीं न गुम कर दे
ये दलील-ए-ख़ुश-दिली है मिरे वास्ते नहीं है
वो मिले तो बे-तकल्लुफ़ न मिले तो बे-इरादा
लुत्फ़-ए-वफ़ा नहीं कि वो बेदाद-गर नहीं
जिस तरह हम ने रातें काटी हैं
हुस्न के राज़-ए-निहाँ शरह-ए-बयाँ तक पहुँचे