Ghazals of Mohsin Asrar

Ghazals of Mohsin Asrar
नाममोहसिन असरार
अंग्रेज़ी नामMohsin Asrar
जन्म की तारीख1948
जन्म स्थानKarachi, Pakistan

वो है आग वो पानी है

तेरे ग़म का तदारुक किया तो हमें शर्म आ जाएगी और मर जाएँगे

सताता वो अगर फ़ितरत से हट के

सर उठाया इश्क़ ने तो चोट इक भारी पड़ी

समाअ'तों के लिए राज़ छोड़ आए हैं

सैलाबों के बा'द हम ऐसे दीवाने हो जाते हैं

मुझे मलाल भी उस की तरफ़ से होता है

मिट्टी हो कर इश्क़ किया है इक दरिया की रवानी से

मिरे बारे में कुछ सोचो मुझे नींद आ रही है

ख़्वाब को सूरत-ए-हालात बना जाता है

ख़ुद ही तस्लीम भी करता हूँ ख़ताएँ अपनी

ख़याल-ओ-ख़्वाब को पाबंद-ए-ख़ू-ए-यार रखा

ख़ौफ़-ज़दा लोगों से रस्म-ओ-राह बढ़ाते फिरते हैं

कार-ए-आसान को दुश्वार बना जाता है

कल रात वो झगड़ती रही बात बात पर

जब वाहिमे आवाज़ की बुनियाद से निकले

जानाँ गए दिनों का तअ'ल्लुक़ बहाल कर

जान जाए अगर तो जाने दे

हम खड़े हैं हाथ यूँ बाँधे हुए

हम अपने ज़ेहन पर पहले उसे तारी करेंगे

हर नए साल नया पेड़ लगा देता हूँ

गुज़र चुका है ज़माना विसाल करने का

दूरियों में क़राबतों का मज़ा

दिलासा दे वगर्ना आँख को गिर्या पकड़ लेगा

देर से सो कर उठने वालो तड़पो लेकिन शोर न हो

चराग़-ए-राहगुज़र है जला रहेगा वो

अच्छा है वो बीमार जो अच्छा नहीं होता

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