आँख से आँख मिलाना तो सुख़न मत करना
टोक देने से कहानी का मज़ा जाता है
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मुझे मलाल भी उस की तरफ़ से होता है
हम खड़े हैं हाथ यूँ बाँधे हुए
हम अपने ज़ेहन पर पहले उसे तारी करेंगे
जिस लफ़्ज़ को मैं तोड़ के ख़ुद टूट गया हूँ
अजीब शख़्स था लौटा गया मिरा सब कुछ
तू ख़ुद भी जागता रह और मुझ को भी जगाता रह
हर नए साल नया पेड़ लगा देता हूँ
मिट्टी हो कर इश्क़ किया है इक दरिया की रवानी से
हम अपने ज़ाहिर ओ बातिन का अंदाज़ा लगा लें
कार-ए-आसान को दुश्वार बना जाता है
क्या ज़माना था कि हम ख़ूब जचा करते थे
जानाँ गए दिनों का तअ'ल्लुक़ बहाल कर