तू ख़ुद भी जागता रह और मुझ को भी जगाता रह
नहीं तो ज़िंदगी को दूसरा क़िस्सा पकड़ लेगा
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दूरियों में क़राबतों का मज़ा
अच्छा है वो बीमार जो अच्छा नहीं होता
जगह बदलने से हैअत कहाँ बदलती है
चराग़-ए-राहगुज़र है जला रहेगा वो
वो है आग वो पानी है
जवाब देता है मेरे हर इक सवाल का वो
जब वाहिमे आवाज़ की बुनियाद से निकले
जानाँ गए दिनों का तअ'ल्लुक़ बहाल कर
वो मजबूरी मौत है जिस में कासे को बुनियाद मिले
तेरे बग़ैर लगता है गोया ये ज़िंदगी
दिलासा दे वगर्ना आँख को गिर्या पकड़ लेगा
सर उठाया इश्क़ ने तो चोट इक भारी पड़ी