तेरी ही तरह आता है आँखों में तिरा ख़्वाब
सच्चा नहीं होता कभी झूटा नहीं होता
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Jaun Eliya
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कार-ए-आसान को दुश्वार बना जाता है
हम-साए का सुख तो उस के ख़्वाब का पूरा होना है
जिस दिन के गुज़रते ही यहाँ रात हुई है
घर में रहना मिरा गोया उसे मंज़ूर नहीं
अजीब शख़्स था लौटा गया मिरा सब कुछ
जगह बदलने से हैअत कहाँ बदलती है
हम खड़े हैं हाथ यूँ बाँधे हुए
सताता वो अगर फ़ितरत से हट के
डर है कहीं मैं दश्त की जानिब निकल न जाऊँ
वो मजबूरी मौत है जिस में कासे को बुनियाद मिले
तेरे बग़ैर लगता है गोया ये ज़िंदगी
मैं बैठ गया ख़ाक पे तस्वीर बनाने