अजीब शख़्स था लौटा गया मिरा सब कुछ
मुआवज़ा न लिया देख-भाल करने का
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Gulzar
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Rahat Indori
Habib Jalib
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जान जाए अगर तो जाने दे
ख़ौफ़-ज़दा लोगों से रस्म-ओ-राह बढ़ाते फिरते हैं
वो मजबूरी मौत है जिस में कासे को बुनियाद मिले
वो है आग वो पानी है
जवाब देता है मेरे हर इक सवाल का वो
हम अपने ज़ेहन पर पहले उसे तारी करेंगे
डर है कहीं मैं दश्त की जानिब निकल न जाऊँ
गुज़र चुका है ज़माना विसाल करने का
जब वाहिमे आवाज़ की बुनियाद से निकले
हम अपने ज़ाहिर ओ बातिन का अंदाज़ा लगा लें
अच्छा है वो बीमार जो अच्छा नहीं होता
क्या ज़माना था कि हम ख़ूब जचा करते थे