डर है कहीं मैं दश्त की जानिब निकल न जाऊँ
बैठा हूँ अपने पाँव में ज़ंजीर डाल कर
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कार-ए-आसान को दुश्वार बना जाता है
हम-साए का सुख तो उस के ख़्वाब का पूरा होना है
बहुत अच्छा तिरी क़ुर्बत में गुज़रा आज का दिन
सताता वो अगर फ़ितरत से हट के
जवाब देता है मेरे हर इक सवाल का वो
समाअ'तों के लिए राज़ छोड़ आए हैं
घर में रहना मिरा गोया उसे मंज़ूर नहीं
हम अपने ज़ाहिर ओ बातिन का अंदाज़ा लगा लें
दिलासा दे वगर्ना आँख को गिर्या पकड़ लेगा
'मोहसिन' बुरे दिनों में नया दोस्त कौन हो
ख़्वाब को सूरत-ए-हालात बना जाता है
दूरियों में क़राबतों का मज़ा