बहुत अच्छा तिरी क़ुर्बत में गुज़रा आज का दिन
बस अब घर जाएँगे और कल की तय्यारी करेंगे
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तेरे बग़ैर लगता है गोया ये ज़िंदगी
सैलाबों के बा'द हम ऐसे दीवाने हो जाते हैं
सर उठाया इश्क़ ने तो चोट इक भारी पड़ी
ख़्वाब को सूरत-ए-हालात बना जाता है
हम-साए का सुख तो उस के ख़्वाब का पूरा होना है
ख़ुद को मैं भला ज़ेर-ए-ज़मीं कैसे दबाता
तेरे ग़म का तदारुक किया तो हमें शर्म आ जाएगी और मर जाएँगे
जवाब देता है मेरे हर इक सवाल का वो
मुझे मलाल भी उस की तरफ़ से होता है
दूरियों में क़राबतों का मज़ा
दिलासा दे वगर्ना आँख को गिर्या पकड़ लेगा