बहुत कुछ तुम से कहना था मगर मैं कह न पाया
लो मेरी डाइरी रख लो मुझे नींद आ रही है
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तू ख़ुद भी जागता रह और मुझ को भी जगाता रह
हम खड़े हैं हाथ यूँ बाँधे हुए
दिलासा दे वगर्ना आँख को गिर्या पकड़ लेगा
डर है कहीं मैं दश्त की जानिब निकल न जाऊँ
तेरी ही तरह आता है आँखों में तिरा ख़्वाब
वो है आग वो पानी है
सताता वो अगर फ़ितरत से हट के
जैसे सज्दे में क़त्ल हो कोई
मिट्टी हो कर इश्क़ किया है इक दरिया की रवानी से
अच्छा है वो बीमार जो अच्छा नहीं होता
मिरे बारे में कुछ सोचो मुझे नींद आ रही है
ख़ुद ही तस्लीम भी करता हूँ ख़ताएँ अपनी