तेरे बग़ैर लगता है गोया ये ज़िंदगी
तन्क़ीद कर रही है मिरी ख़्वाहिशात पर
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तू ख़ुद भी जागता रह और मुझ को भी जगाता रह
ख़ुद ही तस्लीम भी करता हूँ ख़ताएँ अपनी
मुझे मलाल भी उस की तरफ़ से होता है
हवा चराग़ बुझाने लगी तो हम ने भी
सैलाबों के बा'द हम ऐसे दीवाने हो जाते हैं
जगह बदलने से हैअत कहाँ बदलती है
जैसे सज्दे में क़त्ल हो कोई
वो है आग वो पानी है
क्या ज़माना था कि हम ख़ूब जचा करते थे
हर नए साल नया पेड़ लगा देता हूँ
जानाँ गए दिनों का तअ'ल्लुक़ बहाल कर
वो मजबूरी मौत है जिस में कासे को बुनियाद मिले