हवा चराग़ बुझाने लगी तो हम ने भी
दिए की लौ की जगह तेरा इंतिज़ार रखा
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
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Parveen Shakir
Allama Iqbal
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Faiz Ahmad Faiz
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हम-साए का सुख तो उस के ख़्वाब का पूरा होना है
सर उठाया इश्क़ ने तो चोट इक भारी पड़ी
जिस लफ़्ज़ को मैं तोड़ के ख़ुद टूट गया हूँ
दिलासा दे वगर्ना आँख को गिर्या पकड़ लेगा
हर नए साल नया पेड़ लगा देता हूँ
हम अपने ज़ेहन पर पहले उसे तारी करेंगे
बहुत कुछ तुम से कहना था मगर मैं कह न पाया
कल रात वो झगड़ती रही बात बात पर
ख़ुद ही तस्लीम भी करता हूँ ख़ताएँ अपनी
जैसे सज्दे में क़त्ल हो कोई
जब वाहिमे आवाज़ की बुनियाद से निकले
तेरे ग़म का तदारुक किया तो हमें शर्म आ जाएगी और मर जाएँगे