जिस दिन के गुज़रते ही यहाँ रात हुई है
ऐ काश वो दिन मैं ने गुज़ारा नहीं होता
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दूरियों में क़राबतों का मज़ा
मिरे बारे में कुछ सोचो मुझे नींद आ रही है
समाअ'तों के लिए राज़ छोड़ आए हैं
हम अपने ज़ेहन पर पहले उसे तारी करेंगे
जवाब देता है मेरे हर इक सवाल का वो
तेरे बग़ैर लगता है गोया ये ज़िंदगी
सैलाबों के बा'द हम ऐसे दीवाने हो जाते हैं
जगह बदलने से हैअत कहाँ बदलती है
हम अपने ज़ाहिर ओ बातिन का अंदाज़ा लगा लें
जब वाहिमे आवाज़ की बुनियाद से निकले
जिस लफ़्ज़ को मैं तोड़ के ख़ुद टूट गया हूँ
मिट्टी हो कर इश्क़ किया है इक दरिया की रवानी से