साँसों के इस हुनर को न आसाँ ख़याल कर

साँसों के इस हुनर को न आसाँ ख़याल कर

ज़िंदा हूँ साअ'तों को मैं सदियों में ढाल कर

माली ने आज कितनी दुआएँ वसूल कीं

कुछ फूल इक फ़क़ीर की झोली में डाल कर

कुल यौम-ए-हिज्र ज़र्द ज़मानों का यौम है

शब भर न जाग मुफ़्त में आँखें न लाल कर

ऐ गर्द-बाद लौट के आना है फिर मुझे

रखना मिरे सफ़र की अज़िय्यत सँभाल कर

मेहराब में दिए की तरह ज़िंदगी गुज़ार

मुँह-ज़ोर आँधियों में न ख़ुद को निढाल कर

शायद किसी ने बुख़्ल-ए-ज़मीं पर किया है तंज़

गहरे समुंदरों से जज़ीरे निकाल कर

ये नक़्द-ए-जाँ कि इस का लुटाना तो सहल है

गर बन पड़े तो इस से भी मुश्किल सवाल कर

'मोहसिन' बरहना-सर चली आई है शाम-ए-ग़म

ग़ुर्बत न देख इस पे सितारों की शाल कर

(2614) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Sanson Ke Is Hunar Ko Na Aasan KHayal Kar In Hindi By Famous Poet Mohsin Naqvi. Sanson Ke Is Hunar Ko Na Aasan KHayal Kar is written by Mohsin Naqvi. Complete Poem Sanson Ke Is Hunar Ko Na Aasan KHayal Kar in Hindi by Mohsin Naqvi. Download free Sanson Ke Is Hunar Ko Na Aasan KHayal Kar Poem for Youth in PDF. Sanson Ke Is Hunar Ko Na Aasan KHayal Kar is a Poem on Inspiration for young students. Share Sanson Ke Is Hunar Ko Na Aasan KHayal Kar with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.