जान कर चुप हैं वगरना हम भी
बात करने का हुनर जानते हैं
Anwar Masood
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(702) Peoples Rate This
सुनते हैं कि आबाद यहाँ था कोई कुम्बा
अगर चमन का कोई दर खुला भी मेरे लिए
इस तरफ़ से उस तरफ़ तक ख़ुश्क ओ तर पानी में है
दीवार अब कहीं न कोई दर दिखाई दे
लिबास बदले नहीं हम ने मौसमों की तरह
हम ने भी देखी है दुनिया 'मोहसिन'
बिछड़ने वालों में हम जिस से आश्ना कम थे
दूर तक सब्ज़ा कहीं है और न कोई साएबाँ
हमें तो ख़ैर कोई दूसरा अच्छा नहीं लगता
दूर रहना था जब उस को 'मोहसिन'
वो मौत का मंज़र जो था दिन रात वही है
ये हैं जो आस्तीन में ख़ंजर कहाँ से आए