लिबास बदले नहीं हम ने मौसमों की तरह
कि ज़ेब-ए-तन जो किया एक ही लबादा किया
Habib Jalib
Rahat Indori
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
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हमें तो ख़ैर कोई दूसरा अच्छा नहीं लगता
हर शख़्स यहाँ गुम्बद-ए-बे-दर की तरह है
वो मौत का मंज़र जो था दिन रात वही है
ठहरे हुए न बहते हुए पानियों में हूँ
दूर तक सब्ज़ा कहीं है और न कोई साएबाँ
ज़माने भर की ज़िल्लत सामने थी
इस तरफ़ से उस तरफ़ तक ख़ुश्क ओ तर पानी में है
बिछड़ने वालों में हम जिस से आश्ना कम थे
अगर चमन का कोई दर खुला भी मेरे लिए
कोई अकेला तो मैं सादगी-पसंद न था
मंज़िल-ओ-सम्त-ए-सफ़र से बे-ख़बर ना-आश्ना