बिछड़ने वालों में हम जिस से आश्ना कम थे
न जाने दिल ने उसे याद क्यूँ ज़ियादा किया
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(682) Peoples Rate This
दूर तक सब्ज़ा कहीं है और न कोई साएबाँ
क्या देखते हो राह में रुक कर यहाँ वहाँ
जाना है उसी सम्त कि चारा नहीं कोई
हम ने भी देखी है दुनिया 'मोहसिन'
वो मौत का मंज़र जो था दिन रात वही है
ठहरे हुए न बहते हुए पानियों में हूँ
इस तरफ़ से उस तरफ़ तक ख़ुश्क ओ तर पानी में है
कोई कश्ती में तन्हा जा रहा है
रस्ते में कोई आ के इनाँ-गीर हो न जाए
अगर चमन का कोई दर खुला भी मेरे लिए
इक आस तो है कोई सहारा नहीं तो क्या
यूँ समझ लो कि ब-जुज़ नाम-ए-ख़ुदा कुछ न रहा