गर कभी रोना ही पड़ जाए तो इतना रोना
आ के बरसात तिरे सामने तौबा कर ले
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मेरे स्कूल
दरिया-दिली से अब्र-ए-करम भी नहीं मिला
ये बुत जो हम ने दोबारा बना के रक्खा है
मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
सफ़ेद सच
अलमारी से ख़त उस के पुराने निकल आए
मोहब्बत एक पाकीज़ा अमल है इस लिए शायद
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे
मसर्रतों के ख़ज़ाने ही कम निकलते हैं
पैरों को मिरे दीदा-ए-तर बाँधे हुए है
हम कुछ ऐसे तिरे दीदार में खो जाते हैं