गो अब हज़ार शक्ल से जल्वा करे कोई
अपना तो दिल इस आईना-ख़ाने से उठ गया
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सफ़्फ़ाक इब्तिदा से वो बे-रहम है ग़लत
शब जो होली की है मिलने को तिरे मुखड़े से जान
मजनूँ कहानी अपनी सुनावे अगर मुझे
तुझ बिन तो कभी गुल के तईं बू न करूँ मैं
यारान-ए-सुख़न-गो की है वो कंपनी अपनी
जा जो इक दिन मिल गई पहलू में शोख़ी देखियो
मुसव्विरों ने क़लम रख दिए हैं हाथों से
रहमत तिरी ऐ नाक़ा-कश-ए-महमिल-ए-हाजी
लिए आदम ने अपने बेटे पाँच
ईद तू आ के मिरे जी को जलावे अफ़्सोस
पस-ए-क़ाफ़िला जो ग़ुबार था कोई उस में नाक़ा-सवार था
आशिक़ कहें हैं जिन को वो बे-नंग लोग हैं