गो भूल गया हूँ मैं तुझे तो भी तिरा रंग
झलके है मिरे दीदा-ए-हैरान में कितना
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कटता हूँ मैं भी वो कि मिरी जिंस-ए-दिल को देख
ग़म तिरा दिल में मिरे फिर आग सुलगाने लगा
देख उस को इक आह हम ने कर ली
कहते हो एक-आध की है मेरे हाथों मौत
मय पीने से वो आरिज़ क्या और हो गए थे
मेहंदी के धोके मत रह ज़ालिम निगाह कर तू
साया-ए-दीवार जो रोज़-ए-क़यामत में न था
खेल जाते हैं जान पर आशिक़
तेरे कूचे से सफ़र मैं ने किया था जिस दिन
कब लग सके जफ़ा को उस की वफ़ा-ए-आलम
क्यूँ कि कहिए कि अदा-बंदी है
आता है किस अंदाज़ से टुक नाज़ तो देखो