कटता हूँ मैं भी वो कि मिरी जिंस-ए-दिल को देख
गाहक जो रीझ जाए तो क़ीमत फ़ुज़ूँ करूँ
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दो तीन दम-ए-सर्द भरे हैं तो वो बोले
दुख़्तर-ए-रज़ की हूँ सोहबत का मुबाशिर क्यूँ-कर
आज ख़ूँ हो के टपक पड़ने के नज़दीक है दिल
जब दिल का जहाज़ अपना तबाही में पड़े है
जान जानी है मिरी ऐ बुत-ए-कम-सिन तुझ पर
कभी वफ़ाएँ कभी बेवफ़ाइयाँ देखीं
हसरत पे उस मुसाफ़िर-ए-बे-कस की रोइए
क्यूँ शेर-ओ-शायरी को बुरा जानूँ 'मुसहफ़ी'
फिर आई ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल की लहर पेश-ए-नज़र
देखना कम-निगही कीजियो मत ऐ साक़ी
फ़िक्र-ए-सुख़न तलाश-ए-मआश ओ ख़याल-ए-यार
ऐश-ए-जहाँ बग़ल में तुम्हारी सब आ रहा