ऐश-ए-जहाँ बग़ल में तुम्हारी सब आ रहा
दिल ही दिया जो तुम को तो फिर और क्या रहा
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दिल को ये इज़्तिरार कैसा है
तू देखे तो इक नज़र बहुत है
हम-सफ़ीरों से सबा कहियो कि तुम में भी कभी
वो आरज़ू न रही और वो मुद्दआ न रहा
शब में देखी हैं पड़ी पाँव में ज़ंजीरें दो
उस की पड़ी न आँख ख़त-ओ-ख़ाल पर तिरे
फ़लक की ख़बर कब है ना-शाइरों को
जूँ ही ज़ंजीर के पास आए पाँव
मुँह में जिस के तू शब-ए-वस्ल ज़बाँ देता है
इस नौ-बहार में तो तरह गुल के ऐ नसीम
ज़ख़्म है और नमक फ़िशानी है
उस के मक़्तल में मिरा ख़ून बटा दस्त-ब-दस्त