जान जानी है मिरी ऐ बुत-ए-कम-सिन तुझ पर
मर ही जाऊँगा गला काट के इक दिन तुझ पर
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Habib Jalib
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(595) Peoples Rate This
लाख हम शेर कहें लाख इबारत लिक्खें
ऊधर गया तू ग़ुस्ल को हम्माम की तरफ़
कर्बला है ये गली क्या जो नहीं मिलता याँ
'मीर' क्या चीज़ है 'सौदा' क्या है
ये कब ख़याल में लाते हैं ताज-ए-शाही को
हिन्दोस्ताँ में दौलत ओ हशमत जो कुछ कि थी
दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर
भरी आती हैं हर घड़ी आँखें
मज़हब की मेरे यार अगर जुस्तुजू करें
दौलत-ए-फ़क़्र-ओ-फ़ना से हैं तवंगर हम लोग
शब में वाँ जाऊँ तो जाऊँ किस तरह
गह तीर मारता है गह संग फेंकता है