जान को जैसे निकाले है कोई क़ालिब से
क्या बुरी तरह तिरे कूचे से हम निकले हैं
Anwar Masood
Allama Iqbal
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Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
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रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया
दैर ओ हरम ब-चशम-ए-हक़ीक़त नहीं जुदा
ना-तवानी के सबब याँ किस से उट्ठा जाए है
ढूँढता है मुझे वो तेग़ लिए और मैं वहीं
वादा-ए-वस्ल दिया ईद की शब हम को सनम
चाहूँगा मैं तुम को जो मुझे चाहोगे तुम भी
काश सोता ही रहूँ मैं कि नहीं चाहता दिल
मैं सवा शेर के कुछ और समझता ही नहीं
बनाया एक काफ़िर के तईं उस दम मैं दो काफ़िर
वो आप कर रही है मुदाम उस की जुस्तुजू
हम से पाई नहीं जाती कमर उस की ऐ ज़ुल्फ़
होता है मुसाफ़िर को दो-राहे में तवक़्क़ुफ़