चाहूँगा मैं तुम को जो मुझे चाहोगे तुम भी
होती है मोहब्बत तो मोहब्बत से ज़ियादा
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इस नाज़नीं की बातें क्या प्यारी प्यारियाँ हैं
उम्र-ए-पस-माँदा कुछ दलील सी है
शायद कि किसी और से था वस्ल का वादा
गर रहूँ शहर में हो दूद के बाइस ख़फ़क़ाँ
इस तरफ़ भी कभी आना कि असीरान-ए-क़फ़स
चेहरे पे एक के भी न पाया वफ़ा का रंग
महरूम है नामा-दार-ए-दुनिया
मसलख़-ए-इश्क़ में खिंचती है ख़ुश-इक़बाल की खाल
नज़र क्या आए ज़ात-ए-हक़ किसी को
मुझ से इक बात किया कीजिए बस
सब उठ्ठे बज़्म से और अपने अपने घर को चले