फिर आई ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल की लहर पेश-ए-नज़र
फिर इक जुनूँ के नए सिलसिले हुए दिल में
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(331) Peoples Rate This
मर्ग की देखते ही शक्ल गए भाग हवास
जब मैं ने कहा आँखें छुपा खोल दिया मुँह
हूँ शैख़ मुसहफ़ी का मैं हैरान-ए-शाएरी
छुरियाँ चलीं शब दिल ओ जिगर पर
बैठा था आ के क़ैस तो लैला के दर पे लेक
सदा फ़िक्र-ए-रोज़ी है ता ज़िंदगी है
क़ासिद को उस ने जाते ही रुख़्सत किया था लेक
इतने महकूम-ए-बुताँ हैं जो ये काफ़िर चाहें
शब मगर रह गई थोड़ी जो नज़र आता है
देखें तो क्यूँकर वो काफ़िर दर तक अपने न आवेगा
तसव्वुर तेरी सूरत का मुझे हर शब सताता है
गर देखिए तो आईना-ए-क़द-नुमा की शक्ल