मर्ग की देखते ही शक्ल गए भाग हवास
लड़के जूँ खेलते में जाते हैं उस्ताद से छुप
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शब-ए-हिज्र का माजरा कोएले से
चराग़-ए-हुस्न-ए-यूसुफ़ जब हो रौशन
क्या जानिए किस किस को मैं याँ दी है अज़िय्यत
शैख़-उल-हरम मोअज़्ज़िन दोनों चलन के बद हैं
आख़िर तो अर्श पर हैं अर्वाह-ए-शाइराँ भी
ले लिया प्यार से अक्स अपने का झुक कर बोसा
जो शम्अ है काबे की वही नूर का शोअ'ला
मजनूँ कहानी अपनी सुनावे अगर मुझे
फ़हमीदा है जो तुझ को तो फ़हमीद से निकल
कल पतंग उस ने जो बाज़ार से मँगवा भेजा
चमन को आग लगावे है बाग़बाँ हर रोज़
मैं तेरे डर से न देखा उधर बहुत शब-ए-वस्ल