मेहंदी के धोके मत रह ज़ालिम निगाह कर तू
ख़ूँ मेरा दस्त-ओ-पा से तेरे लिपट रहा है
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रखता है क़दम नाज़ से जिस दम तू ज़मीं पर
बहस उस की मेरी वक़्त-ए-मुलाक़ात बढ़ गई
रुख़ से लहरा कर ज़नख़दाँ के हैं माइल मु-ए-ज़ुल्फ़
गर और भी मिरी तुर्बत पे यार ठहरेगा
नासेहा दूर हो चल मुझ से तू हिज्जे मत कर
इक बिजली की कौंद हम ने देखी
कीजिए ज़ुल्म सज़ा-वार-ए-जफ़ा हम ही हैं
औरों की तरफ़ तू देखता है
वारफ़्ता हूँ ऐसा में कि कूचे में बुताँ के
आँखों को फोड़ डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ
गर अब्र घिरा हुआ खड़ा है
दिल्ली पे रोना आता है करता हूँ जब निगाह