हम ने भेजा तो है उस गुल को ज़बानी पैग़ाम
पर ये डर है न करे उस पे गिरानी पैग़ाम
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दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर
ने बुत है न सज्दा है ने बादा न मस्ती है
चली भी जा जरस-ए-ग़ुंचा की सदा पे नसीम
क़ैस मिले तो उस से पूछूँ क्या तिरे जी में आई दिवाने
ख़्वाब-ए-आराम में सोता था वो गुल क़हर हुआ
इतनी बे-शर्म-ओ-हया हो गई क्यूँ दुख़्तर-ए-रज़
वो आरज़ू न रही और वो मुद्दआ न रहा
हमें नित असीर-ए-बला चाहता है
कर्बला है ये गली क्या जो नहीं मिलता याँ
कहिए जो झूट तो हम होते हैं कह के रुस्वा
यक क़तरा ख़ूँ बग़ल में है दिल मिरी सो इस को
वारफ़्ता हूँ ऐसा में कि कूचे में बुताँ के