सादिक़ से बस इक आन में हो जावे तू काज़िब
दिखलाऊँ अगर तुझ को मैं उस ज़ुल्फ़ का ख़म सुब्ह
Rahat Indori
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(283) Peoples Rate This
'मुसहफ़ी' गरचे ये सब कहते हैं हम से बेहतर
राँझा यही कहता था इधर देखियो मजनूँ
गए हैं यार अपने अपने घर दालान ख़ाली है
साबित तू रह जफ़ा पे मैं क़ाएम वफ़ा पे हूँ
कल तो खेले था वो गिली डंडा
दिल को ये इज़्तिरार कैसा है
ख़्वाब-ए-आराम में सोता था वो गुल क़हर हुआ
पान खाने की अदा ये है तो इक आलम को
हमें नित असीर-ए-बला चाहता है
'मुसहफ़ी' तू ने ज़ि-बस गुल के लिए हैं बोसे
यूँ चश्म-ए-तर से चेहरे पर आँसू हुए रवाँ
ऐ इश्क़ जहाँ है यार मेरा