रौनक़ गुलशन जो वो रिंद-ए-शराबी हो गया
फूल साग़र बन गया ग़ुंचा गुलाबी हो गया
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वाह क्या इस गुल-बदन का शोख़ है रंग-ए-बदन
मग़फ़िरत की नज़र आती है बस इतनी सूरत
काबे चलता हूँ पर इतना तो बता
आह कब लब पर नहीं है दाग़ कब दिल में नहीं
नज़्ज़ारा-ए-क़ातिल ने किया महव ये हम को
बाक़ी अभी है तर्क-ए-तमन्ना की आरज़ू