Ghazals of Muzaffar Hanfi

Ghazals of Muzaffar Hanfi
नाममुज़फ़्फ़र हनफ़ी
अंग्रेज़ी नामMuzaffar Hanfi
जन्म की तारीख1936
जन्म स्थानDelhi

यूँ तोड़ न मुद्दत की शनासाई इधर आ

ये इज़्तिराब देखना ये इंतिशार देखना

वो एक पल का साथ ब-वक़्त-ए-नमाज़ है

वजूद-ए-ग़ैब का इरफ़ान टूट जाता है

उस तरफ़ वो जो नज़र पड़ता है

तुम ने जी भर के सताने की क़सम खाई है

तूफ़ान-ए-बला से जो मैं बच कर गुज़र आया

तिनकों के अरमान लब्बैक लब्बैक

सूखा बाँझ महीना मौला पानी दे

शामियाने मिरी ग़ीबत में हवा तानती है

शाख़ों पर इबहाम के पैकर लटक रहे हैं

शहर भर में कहीं रौनक़ थी न ताबानी थी

रहता है हर वक़्त क़लक़ में

पीर-ए-मुग़ाँ को क़िबला-ए-हाजात कह गया

पहले हम उस की महफ़िल में जाने से कतराए तो

लाइक़-ए-दीद वो नज़ारा था

क्या वस्ल की साअत को तरसने के लिए था

क्या करता मैं हम-अस्रों ने तन्हा मुझ पर छोड़ दिया

ख़ुश्क आँखों से निकल कर आसमाँ पर फैल जा

ख़ुद मुझ को भी मालूम नहीं है कि मैं क्या हूँ

कई सूखे हुए पत्ते हरे मालूम होते हैं

कहाँ तो पा-ए-सफ़र को राह-ए-हयात कम थी

जो होंटों पे मोहर-ए-ख़मोशी लगा दी

जाँ-ब-लब वैसे ही थे और हमें मार चला

इस खुरदुरी ग़ज़ल को न यूँ मुँह बना के देख

ग़ौग़ा खटपट चीख़म धाड़

फ़र्क़ नहीं पड़ता हम दीवानों के घर में होने से

इक मसरफ़-ए-औक़ात-ए-शबीना निकल आया

दीवारों पर गीली रेखाएँ रोती हैं

दरिया-ए-शब के पार उतारे मुझे कोई

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