मेरे माहौल में हर सम्त बुरे लोग नहीं
कुछ भले भी मिरे हमराह चले आते हैं
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अभी ख़ामोश हैं शोलों का अंदाज़ा नहीं होता
मुझ को हालात में उलझा हुआ रहने दे यूँही
मुक़ाबले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं
हुजूम-ए-ग़म में किस ज़िंदा-दिली से
फ़राज़-ए-दार पे इक दिन सजा के देख हमें
ख़ुद पुकारेगी जो मंज़िल तो ठहर जाऊँगा
कोई सौग़ात-ए-वफ़ा दे के चला जाऊँगा
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
याद ये किस की आ गई ज़ेहन का बोझ उतर गया
इस राज़ को क्या जानें साहिल के तमाशाई