साहिल पे तेरे ब'अद की वीरानी खा गई
उतरे समुंदरों में तो तुग़्यानी खा गई
ताक़त ये चार दिन की है तारीख़ पढ़ ज़रा
सुल्तान कितने थे जिन्हें सुल्तानी खा गई
दुनिया बदल गई थी कोई ग़म न था मुझे
तुम भी बदल गए थे ये हैरानी खा गई
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तिरी क़ुर्बतें हैं सकूँ जान-ए-जानाँ
तू समझता है गर फ़ुज़ूल मुझे
तुझ से मैं जंग का एलान भी कर ही दूँगा
वस्ल ने जब मिरी तख़्लीक़ को ज़ंजीर क्या
तुझे तहरीर किया
तुम्हें हमारी मोहब्बतों के हसीन जज़्बे बुला रहे हैं
तुम्हारी महफ़िल से जा रहा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
मोहब्बत
कई साल ब'अद