तुझ बिन ख़ाली रह कर कितने साल बिताने होंगे
मेरे हाथों में तेरी तक़दीरें कब उतरेंगी
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तेरी सम्त जाने के रास्तों में ज़िंदा हूँ
उसे बे-नुमू किसी ख़्वाब ने कहीं गहरी नींद सुला दिया
झील में बहते फूल कँवल के झूटे थे
शब को आँखों में ठहरते कोई कब तक देखे
दिल को आज तसल्ली मैं ने दे डाली
बदन को जाँ से जुदा हो के ज़िंदा रहना है
दुख-भरा शहर का मंज़र कभी तब्दील भी हो
अच्छा सा इख़्तिताम भी तुम से न हो सका
फिर एक बार लड़ाई थी अपनी सूरज से
कौन है जो हर लम्हा सूरतें बदलता है
सोचों से इन ख़्वाबों की ज़ंजीरें कब उतरेंगी