महसूस भी हो जाए तो होता नहीं बयाँ
नाज़ुक सा है जो फ़र्क़ गुनाह ओ सवाब में
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चाँदनी रात की ख़मोशी में
कश्मकश
एक एक्ट्रेस
बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
ज़िंदगी से तो ख़ैर शिकवा था
तू मिरी ज़िंदगी का परतव है
बद-गुमाँ मुझ से न ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ होना
राख
मेरी फ़िक्र-ओ-नज़र के चेहरे पर
कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए
तूफ़ान-ए-ग़म की तुंद हवाओं के बावजूद
साक़िया साक़िया सँभाल उसे