साक़िया साक़िया सँभाल उसे
फेंक देवे न कोई जाल उसे
गर्दिश-ए-रोज़गार आई है
एक दो साग़रों से टाल उसे
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मेरी फ़िक्र-ओ-नज़र के चेहरे पर
कश्मकश
महफ़िल उन की साक़ी उन का
कैसे बे-सोज़ लोग हो यारो
ग़म की रातों के ख़्वाब लाया हूँ
रात की पुर-सुकूत ज़ुल्मत में
अल्फ़ाज़ की रग रग में रचाता हूँ लहू
एहसास-ए-नशात की कमी देखोगे
कैफ़ पर भी है कैफ़ का आलम
शाम-ए-वादा का ढल गया साया
एक एक्ट्रेस
चेहरे की तब-ओ-ताब में कौंद लपके