सरहद-ए-होश से गुज़रता हूँ
डूबता हूँ कभी उभरता हूँ
देख कर तेरी मध-भरी आँखें
मैं ख़ुद अपनी तलाश करता हूँ
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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Wasi Shah
Parveen Shakir
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Gulzar
Javed Akhtar
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बद-गुमाँ मुझ से न ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ होना
अमृत से फ़ज़ाएँ दम-ब-दम धुलती हैं
नारवा है किसी की हमराही
अल्लाह रे बे-ख़ुदी कि तिरे पास बैठ कर
किसी के जौर-ओ-सितम का तो इक बहाना था
इस ग़म-ओ-यास के समुंदर में
इंतिक़ाम-ए-ग़म-ओ-अलम लेंगे
कश्मकश
एक एक्ट्रेस
एक आम सी लड़की
जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ होते हैं
ग़म की रातों के ख़्वाब लाया हूँ