किसी के जौर-ओ-सितम का तो इक बहाना था
हमारे दिल को बहर-हाल टूट जाना था
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अक़्ल से सिर्फ़ ज़ेहन रौशन था
एक आम सी लड़की
बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
नारवा है किसी की हमराही
महफ़िल उन की साक़ी उन का
ले के दिल दर्द पाएदार दिया
माहौल से ज़ुल्मत की रिदा हटती है
साक़िया साक़िया सँभाल उसे
अमृत से फ़ज़ाएँ दम-ब-दम धुलती हैं
गुनाहों से हमें रग़बत न थी मगर या रब
शो'लों के भँवर मचल रहे हों जैसे