ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
मगर लोगों से अब ख़ाइफ़ ख़ुदा है
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Gulzar
Rahat Indori
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रौनक़ बढ़ेगी रू-ए-नशात-ए-जमाल की
एहसास-ए-नशात की कमी देखोगे
आप आए तो मुझ को याद आया
ये सोच कर भी हँस न सके हम शिकस्ता-दिल
इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
जब अहल-ए-गुलिस्ताँ को शुऊ'र आएगा
तिरा तज़्किरा सू-ब-सू क्यूँ करें हम
चाँदनी रात की ख़मोशी में
कश्मकश
मस्लहत
एक आम सी लड़की
नारवा है किसी की हमराही