ये सोच कर भी हँस न सके हम शिकस्ता-दिल
यारान-ए-ग़म-गुसार का दिल टूट जाएगा
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चेहरे की तब-ओ-ताब में कौंद लपके
ए'तिराफ़
ग़म की रातों के ख़्वाब लाया हूँ
इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
शाम-ए-वादा का ढल गया साया
डूब कर पार उतर गए हैं हम
चाँदनी से धुली हुई रातें
कैसे बे-सोज़ लोग हो यारो
डस गई तेरी काएनात मुझे
कश्मकश
जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ होते हैं
चाँदनी रात की ख़मोशी में