चाँदनी से धुली हुई रातें
एक गुलफ़म से मुलाक़ातें
मेरे माज़ी मिरे हसीं माज़ी
हाए क्या हो गईं तिरी बातें
Mir Taqi Mir
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अमृत से फ़ज़ाएँ दम-ब-दम धुलती हैं
रात की पुर-सुकूत ज़ुल्मत में
एक क्लर्क लड़की
बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
आँखों में सहर झलक रही है गोया
डस गई तेरी काएनात मुझे
कैफ़ पर भी है कैफ़ का आलम
कश्मकश
शो'लों के भँवर मचल रहे हों जैसे
महफ़िल उन की साक़ी उन का
तू मिरी ज़िंदगी का परतव है
राख