शालों के भँवर मचल रहे हों जैसे
अनवार-ए-शफ़क़ पिघल रहे हों जैसे
यूँ लोरियाँ गाता है इन आँखों में शबाब
मंदिर में चराग़ चल रहे हों जैसे
Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Rahat Indori
Habib Jalib
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चोट खा कर भी मुस्कुराता हूँ
लाख काटो रगें सदाक़त की
बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए
एक धोका है ये शब-रंग सवेरा क्या है
रौनक़ बढ़ेगी रू-ए-नशात-ए-जमाल की
एक एक्ट्रेस
दुनिया है इरम से भी हसीं देख ज़रा
रूह की आँच में उबाला है
कैफ़ पर भी है कैफ़ का आलम
एक क्लर्क लड़की
रात की पुर-सुकूत ज़ुल्मत में