लाख काटो रगें सदाक़त की
कब सदाक़त की रूह मरती है
इस के इक एक क़तरा-ए-ख़ूँ से
इक नई ज़िंदगी उभरती है
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
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Javed Akhtar
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Jaun Eliya
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
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बीते हुए लम्हों का इशारा ले कर
ये सोच कर भी हँस न सके हम शिकस्ता-दिल
माहौल से ज़ुल्मत की रिदा हटती है
इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
गुनाहों से हमें रग़बत न थी मगर या रब
एक एक्ट्रेस
शो'लों के भँवर मचल रहे हों जैसे
सरहद-ए-होश से गुज़रता हूँ
ख़ुदा से क्या मोहब्बत कर सकेगा
मैं तो क्या मुझ को देखने वाला
कश्मकश