मैं तो क्या मुझ को देखने वाला
अब मिरी बेबसी पे रोता है
बात करता हूँ होंट जलते हैं
साँस लेता हूँ दर्द होता है
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बिजलियों की हँसी उड़ाने को
महफ़िल उन की साक़ी उन का
इंतिक़ाम-ए-ग़म-ओ-अलम लेंगे
आँखों में सहर झलक रही है गोया
इस ग़म-ओ-यास के समुंदर में
डूब कर पार उतर गए हैं हम
अल्लाह रे बे-ख़ुदी कि तिरे पास बैठ कर
मेरी फ़िक्र-ओ-नज़र के चेहरे पर
माहौल से ज़ुल्मत की रिदा हटती है
ये सोच कर भी हँस न सके हम शिकस्ता-दिल
ख़ुदा से लोग भी ख़ाइफ़ कभी थे
जब अहल-ए-गुलिस्ताँ को शुऊ'र आएगा