अल्लाह रे बे-ख़ुदी कि तिरे पास बैठ कर
तेरा ही इंतिज़ार किया है कभी कभी
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कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए
कश्मकश
महफ़िल उन की साक़ी उन का
महसूस भी हो जाए तो होता नहीं बयाँ
राख
नारवा है किसी की हमराही
रूह की आँच में उबाला है
लाख काटो रगें सदाक़त की
सरहद-ए-होश से गुज़रता हूँ
तूफ़ान-ए-ग़म की तुंद हवाओं के बावजूद
जो महरम-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ होते हैं